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सज्झाय-संग्रह। रे लाल, झोले धरम सुधीर रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ दे. व कुसुम वरषा करे र लाल, एह सती सिरदार रे॥ सु०॥ सीता धीजें ऊतोरी रे लाल, साखभरे संसार रे ॥ सु०॥७॥ रलियायत सहुको थयां रे लाल, सघले थया उछरंग रे॥सु०॥ लक्ष्मण राम खुशी थयारे लाल, सीता शीला सुरंग रे॥ सु० ॥८॥ जगमाहे जस जेहनो रे लाल, अविचल शील कहाय रे॥सु०॥ कहे जिन हर्षसती तणा रे लाल, नित प्रणमीले पाय रे सु०॥६॥
___ अनाथी मुनिकी सज्झाय ।
श्रेणीकरयवाडो चढयो, पेखियो मुनि ए कंत॥ वर रूपकाते मोहियो, राय पूछे रे कहो विरतंत ॥१॥श्रेणिकराय हुरे अनाथी निग्रंथ ॥ तिणमें लोधोरे साधुजोनोपंथ ॥श्रे०॥ ए आंकणी॥ इण कोसंबी नगरी वसे,मुझपिता परि गल धन्न । परवार परें परवस्योहु तेहनो रे पुत्र रतन्न॥ श्रे०२॥ इक दिवस मुझ वेदना,ऊपनी तेन ख्मा
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