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अभय-रत्नसार।
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सती सीताकी सज्झाय। जल जलती मिलती घणी रे, झाली झाल अपार रे ॥ सुजाण सोता ॥ जाणे केसू फूलियां रे लाल, राता खैर अङ्गार रे ॥ सु० ॥ १॥धीज कर सीतासती रे लाल, ॥ शील तणे परि माण रे॥सु० ॥ लक्ष्मण राम खुशी थया रे लाल-निरख राणा राण रे ॥ सु०॥ २ ॥ स्नान करी निरमल जलें रे लाल, पावक पासें आय रे ॥सु० ऊभी जाणे सुरांगना रे लाल, अनुपम रूप दिखाय र ॥ सु०॥३॥ नर नारी मिलियां घणां र लाल, ऊभाकरे हाय हाय रे ॥ सु०॥ भस्म हशी इण आगमें रे लाल, राम करे अन्याय रे॥ सु०॥ ४ ॥ राघव बिन वांछयो हुवे रे लाल,सुपनेहो नहिं काय रे ॥सु०॥ तो मुझ अगन प्रजालजो रे लाल, नहिं तो पाणी होय रे ॥ सु० ॥ ५॥ इम कहि पेठी आगमें रे लाल, तुरत अगन थयो नीर रे ॥ सु०॥ जाणे द्रह जलशं भस्यो
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