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५१८ सज्झाय-संग्रह।
निन्दावारक-सज्झाय।। निंदा म करजो कोइनो पारकी रे, निंदानां बोल्यां महा पाप रे ॥ वयर विरोध वाधे घणोरे, निंदा करतां न गणे माय बाप रे ॥ निं० ॥ १ दूर वलंती कां देखो तुझे रे, पगमां बलती देखो सहु कोय रे ॥ परना मेलमा धोयां लूगडांरेकहो केम ऊजला होयरे॥नि० ॥ २॥ आप सं. भालो सहुको आपणो रे, निंदानी मूको परी टे. व रे॥ थोडे घणे अवगुणे सहु भस्यां रे, केहनां नलीयां चूए केहनां नेव रे ॥ निं० ॥३॥ निदा करे ते थाये नारकी रे, तप जप कीधू सहु जाय रे ॥ निंदा करो तो करजो आपणी रे, जेमछुटकबारो थाय रे ॥ नि ॥४॥ गुण ग्रहजो सहुको तणो रे, जेहमां देखो एक विचार रे॥ कृ. ष्णपरे सुख पामशो रे समयसुंदर कहे सुखकार रे ॥ निं० ॥५॥
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