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अभय रत्नसार ।
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य ॥ मात पिता सह जरी रह्या, तोही पण रे समाधि न थाय ॥ श्रे० ॥ ३ ॥ गोरडी गुण मन ओरडी अबला नार ॥ कारड़ी पीडा में सही, नहिं कीधी रे मोर डी सार ॥ भे० ॥ ४ ॥ बहराजवैद्य बुलाइया, कीला कोड़ीउपाय || बावनाचंदन लेईया, पण तोही रे दाह नवि जाय ॥
० ||५|| वेदना जो मुझ उपशमे, तो लेउं संजमभार ॥ इम चिंतवतां वेदन गई, व्रत लोधोहर अपार ॥ ० ॥ ६ ॥ जगमांहे को केहनो नहिं, तेभणी हं रे अनाथ ॥ वीतरागनो धरम म्हारो, कोई नहीं रे मुगतिनो साथ ॥ ० ॥ ७ ॥ कर जोड़ी राजा गुण स्तवे, धन धन तुं अनगार ॥ श्रेणिक समकित तिहां लहे, वांदी पहुंचे रे सरग मकार ॥ ० ॥ ८ ॥ मुनिवर अनाथी गावतां, कर्मनी तूटे कोड़ी ॥ गणि समयसुंदर तेहना, पाय बांदे रे बे कर जोड़ी ॥ ० ॥ ६ ॥ इति ॥
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