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सज्झाय संग्रह |
॥ २८ ॥ कहतं भन्नइ सुक्खं, सुचिरेण वि जस्स दुक्खमल्लिहियए ॥ जं च मरणा वसाणे, भव संसाराणबंधिं च ॥ २६ ॥ उवस सहस्सेहिं, बोहिज्जतो नबुझई कोई ॥ जह बंभदत्तराया, उदाइनिव मारो चेव ॥३०॥ गयकन्न चंचलाए, अपरिचत्ताइ रायलच्छीए ॥ जीवासक्कम्म कलिमल भरिय मरातो पति अहे ||३१|| वोत्तूवि जीवाणं, सदुक्करा इंति पावचरियाई ॥ भयवंजा सा सासा, पच्चाएसो हु इण मोते ||३२|| पडिवजिऊण दोसे, नियए सम्भंच पायवडियाए । तो किर मिगाचईए, उष्पन्न केवलं नाणं ॥३३॥ ॥ राईसंथारा- पोसह लज्झाय ॥ निस्सिही निस्सिही नमो खमासमणाणं, गोयमाईणं, महामुखी ॥ नवकार ३, करेमि - मंते ३, कहना, अणुजाह जिट्ठिना, अजायह परमगुरु, गुणगणरयणं हिं मंडिअसरीरा ॥ बहु पडिपुन्ना पोरिसि, राई संथारए ठामि ॥ १ ॥
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