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सज्झाय-संग्रह ।
अजचंदणा अजा ॥ नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सव्व अजाणं ॥१३॥ वरसमय दिक्वियाए,अजाए अजदिविकओसाहू । अभिगमण वंदण नम, सणेण विणएणसो पुजो॥१४॥ धम्मो पुरिसप्पभवो, पुरिस वर देसिओ परिसजिट्टो । लोएवि पहू पुरिसो, किंपुण लोगुत्तमे धम्मे ॥१५॥ संवाहणस्सरण्णो, तइया वाणारसीइ नयरीए ॥ कन्ना सहस्समहियं, आसी किररूववंतीणं ॥१६॥ तह विय सारायसिरो, उल्लत्ती न ताइया ताहिं। उयरदिएण इक, ण ताइया अंगवीरेण ॥१७॥ महिलाणसु बहुयाण वि, मजाओ इह समत्त घरसारो ॥ सायपुरिसेहिं विजइ, जणेवि पुरिसो जहिं नत्थी ॥१८॥ किं परजण बहुजाणा, वणाहिं वरमप्प सक्खियं सुकयं ॥ इह भरहचकवट्टी, पसन्नचंदोय दिघंता ॥१६॥ वेसो विट्ठ अप्पमाणो, असंजम पएसु वट्टमाणस्स ॥ किं परियत्तियवेसं, विसं न मारेइ खजतं ॥२०॥ धम्म रक्खइ वेसो,
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