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अभय रत्नसार ।
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हार || हि० || ४ || डाकरण साकरण भूतड़ा हो ॥ भ० ॥ सिंह चिताने सूर ॥ वैरी दुसमन चोरटाहो भ० ॥ रहे सदाइ दूर ॥ हि० ॥ ५ ॥ सुख शांता वरते घणी हो || || जे घ्यावे नरनार ॥ परभव जातां जीवने हो ॥ भ० ॥ सरगांको आधार ॥ हि० ॥६॥ राखो सरणाकी आसता हो ॥ भ० ॥ नेड़ो नहिं आवे रोग | वरते आनंद सुख सही हो ॥ भ० ॥ वालो तो संयोग ॥ हि० ॥ ७ ॥ निशिदिन याकुं ध्यावतां हो ॥ भ० ॥ जीव तणो उद्धार | कमी नहिं काइ वस्तुनी हो ॥ भ० ॥ याहि जगमें सार | हि० ॥ ८ ॥ मनचिंता मनोरथ फले हो ॥ भ० ॥ वरते कोड कल्याण ॥ शुद्धमनें करी समरता हो ॥ भ० ॥ निश्चय पद निर्वाण | हिο|| ६ ॥ ए सरणाने ध्यावतां हो ॥४०॥ नाम तणो आधार ॥ ए सरणाकी कीरति कही हो ॥ भ० ॥ ध्यावो मनह मकार ॥ हि० ॥ ॥ १० ॥ संवत् ढारे बावने हो ॥ भ० ॥ पालि सहेर सुखकार ॥
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