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५०६ छिन्नुं जिन-स्तवन । ॥४॥सुनंदनो जीव ते नवम पोहल जिणं, सतक श्रावक शतकीर्ति दसमो भणं। देवकी जाव मुनिसुव्रत इग्यारमो, सत्यकी जीव ते अमम जिन बारमो ॥५॥ वासुदेव जीव निकषाय जिन तेरमो, बलदेवजीव निपुलाक चवदम नमो। पनरमो निरमम देव सुलसा कही, रोहणीजीव चित्रगुप्त सोलम सही ॥६॥ समाध जिन सतरमो श्राविका रेवती, अढारमो शदालजीव संवर जिनपती। दीपायनजीव यशोधर उगणीसमो, कृष्णकोइजीवते विजय जिन वीसमो ॥७॥ मल्लि इकवीसमो जीव नारदतणो, देव बावीसमो अंबउ श्रावक भणु। तेवीसमो अमरजोव अनंत वीरज नमो, स्वातबुधजीव ते भद्र चोवीसमो॥८॥ एह आगामि चोवीस जिन जांणिया, प्रवचनसारोद्धारथी आंणिया। केइ परसिद्ध ने केइअप्रसिद्धकह्या, शास्त्र अनुसारथी साच कर सरदह्या ॥६॥
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