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अभय रत्नसार। ५०५. यशोधर तेम कतारथ, श्री जिनेसर सुद्धमति सुजगीस, सिवकर स्यंदन संप्रति नांमे, वंदीजे जिनवर चोवीस ॥ ६॥ नि० ॥
तीसरी ढाल-सफल संसारनी-ए देशी ॥
जे भविस्संतिअणागए काल ए, तेह चौविस प्रणमीस त्रिहुं काल ए। प्रथम माहाराज श्रेणिकतणो जीव ए, श्रीपद्मनाभ प्रणमीस सदीव ए ॥ १॥ वीरनो पितरियो नाम सुपास ए, हुसीजिन बीय सुरदेव सुप्रकाश ए । श्रेणिक सुत उदाइ नरिंद ए, तीसरो तेह सुपास जिणंद ए॥ २॥ शिष्य श्रोवीरनो पोलो साध ए, चोथो स्वयंप्रभू नाम आराधि ए। दृढायुष जीव सिद्धांतमें जाणिय, पंचम सर्वानुभूति प्रमाणिये ॥३॥ कीर्त इण नाम इक जीव कहीजिये, देवश्रुत ते छठो स्वामि सलहीजिये। संख श्रावक हुस्यै उदय जिन सातमो,आनंदनो जीव पेढाल जिनआठमा
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