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५०४ छिन्नुं जिन-स्तवन।
छिन्तुं जिन-स्तवन । ॥दोहा॥ वरतमांन चौवीसी बंदू, मन सूधै नित मेव री माई ॥ रुषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पदम प्रभु सेव री माई ॥ व०॥१॥ श्रीसुपार्श्व चंद्र प्रभु प्रणम, सुविध शीतल श्रेयांस री माई ॥ वासुपूज्य विमल अनंत धरम जिन, शांति कुथ परसंस री माई ॥ व० ॥२॥ अरिजिन मल्लि अने मुनिसुव्रत, नमि नेमी पास जिनन्द री माई ॥ चोवीसमा श्रीवार जिनेसर, प्रणमं परमानंद री माई ॥३०॥३॥
दूसरी ढाल-प्रह सम सूधा साधु नमु नित-ए. देशी ।
नित २ अतीत चोवीसो नमिय, जेहना नाम प्रगट ए जाण ।। केवलज्ञानी ते निरवाणी, सागर महाजस विमल वखाण ॥४॥ नि०॥ सर्वानुभूति श्रीधरदत्त जिनवर, दामोदर सुतजाश्रीस्वामि ॥ मुनिसुव्रत सुमति शिवगति जिन, श्रोअस्ताग नेमीसर नाम ॥ ५ ॥ नि०॥ अनिल
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