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अभय रत्नसार। ५०३ हामुनी, श्रीदुपसै सूर दयाल ॥ शुद्ध क्रिया खरतर सही, जिन आज्ञा प्रतिपाल ॥ म० ॥३०॥ इम पनर कर्मभूमी जिके, हुआ होस्यै अणंत ॥ वर्तमान श्रीसाधुजी ॥ रत्नत्रइ गुणवंत ॥ म० ॥ ३१॥ ब्राह्मी सुन्दरि रायने, साहुणी चंदनबाल ॥ आदिक सीलवतो सती, त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल ॥ म० ३२ ॥ संवत सोल छत्तीस ए, श्रीविमलनाथ सुरसाल ॥ दिक्षा कल्याणक दिने, गंथी श्रीमुनिमाल ॥ म० ३३॥ रिणी पुरै रलियामणो, श्रीशीतल जिनचंद ॥ सूरि विजय राजै सदा, संघ सकल आणंद ॥म० ॥३४॥श्रीमतिभद्र सुगुरुतणे, सुपसाये सुखकार ॥ चारित्र सिंघ वखाणिय, सदा २ जयकार ॥ म० ॥३५॥ मनहर श्रीमुनिमालका, गुणगण परिमल पूर ॥ कंठ ठवे उत्तम जिके, पामे सूख भरपूर ॥ म०॥ ३६
फिल समान ॥ अष्ट महासिद्ध घरे फले, सदा २ कल्याण ॥म०॥३७॥
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