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अभय-रत्नसार ।
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वीर ए ॥ उ० ॥ श्रीवोर दीक्षित श्री सुबाहुभद्र नंदकुमार ए, आदिक दसे रिष चरिय जेहना सुख विपाक उदार ए ॥ श्रीचंडरुद्र सुसीस खंदग क्षमानिधि कहिये इस काले, कुरुदत्त सुत तीसग सरोरुह रिष नम्यां आस्था फले ॥ १६ ॥ चाल ॥ अंग प्रमुख रिष च्यारे आदरी, विधिसु संजम सिद्धिवधू वरी ॥ अभयकुमार मुनि भयंकरो, हल्ल विल्ल आतम हितकरो | उल्लालो॥ हितकरो दयाधर मेघ मुनिवर नंदिषेण आराधियै, सुनक्षत्र नै सर्वानुभूति समर सिवसुख साधिये ॥ श्रीसिंह साधू अने उदायन चरम राजरुषीसरो, श्रीसालभद्र सुधन्न मुनिवर समरंता
मंगलकरो ॥ २० ॥
तीसरी ढाल - राग धन्यासरी ॥
वडवेरागी वर नमु, युगवर जंबूसांमि ॥ प्रभव सिय्यंभव परगड़ो, सुजस जसोभद्र स्वांमि ॥ महामुनिसर नित नमु जी, नामे घर नव
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