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५०० मुनि मालका। सुदंसण सील सुहामणो॥श्रीअन्नयसत आईकुमार ए, चित्त चतुर नर चित्त चमकार ए॥ उल्लालो ॥ चमकार सार सुजात ऋषिवर देवसांनिध जस घणी, गंगेय गिरुवो गुणे गाजै सुजिन पालत हित धणी ॥ श्रीधर्मघोष सुसीस धर्मरुचि, साधु श्रीजिनदेव ए ॥ श्रीकपिल ऋषि हरिकेशव बल मुनि, नित नमु निरलेव ए॥१७ चाल ॥ जति जयघोष विजयघोष जुओ,सेवं श्रुतधर श्रीदेवलसुत्रो॥श्रीइखुकार नृपति कमला. वती, रांणी भृगुसुप्रोहित सुभमती ॥उल्लाला॥ सुभमती जेहनी जसाभार्या पुत्र दोय वखाणिये, ए छहूं लेइ चारु चारित्र मुगति पहुता जाणिये॥ क्षत्रिय मुनिसर साधु संजम धर्मरुचि महाव्रती, निर्गन्थनाथ अनाथ वंदू समुद्रपाल सुसंयती॥ १८ ॥ चाल ॥ कुम्मापुत्र नमु केवल कल्पो, विधसूशीतल सिवकमला मिल्यौ । धन धन धन्यो सूरगिरी धीर ए, वीरप्रशंस्यो तप गुण
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