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अभय रत्नसार। श्रीसुप्रतिष्ठय तीस सुत्रत, साधु सुव्रत सेहरो॥ चारित्र रिष गुणवंत गोभद्र गरुओगरिमा सागरो १४॥ चाल ॥ सिरि सिवराय ऋषीसर वंदिये, दसारण भद्र नमु दुख छंदिये ॥ अर्जुनमाली सुख संजमधरो, सुदृढप्रहारी सिवरमणी वरो॥ उल्लालो ॥ सिवरमणी वरो श्रीकूरगडू क्षमावंत प्रसिद्धर, कोडिन्न दिन्न अनै सेवाली पनर सतक तिडोत्तरा ॥ गोतम प्रबोधत सिद्ध पुहता नमु चरण करणाधरा ॥ १५ ॥ चाल ॥ गिरुआ श्री गुणसागर गाईये, प्रथवीचंद्र प्रणम्यां सुख पाइयै ॥ खंदकुमार सदा अभिनंदिये, नमिह भरह मित्र मन आणंदिये ॥ उल्लालो ॥ आणंदिये मेतार्य मुनिवर भगत्तसुसमरी करी,रुषी इलापुत्र चिलापुत्र मृगापुत्र हीय धरी ॥ श्रीइन्द्र नाम नग्रंथ निर्मम धर्मऋचि धर्मागिरो॥ तेतलीपुत्र सुबुद्धि बोध तसु जितशत्रु मुनीसरो॥ १६ ॥ चाल ॥ उदय २ कर जगि २ जसतणो, श्रमण
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