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अभय रत्नसार। ४६७ यण निधान ॥ ८॥श्री० ॥ जालि मयालिने उवयाली, पुरससेण वारिसेन प्रजुन्न ॥ संब अने अनिरुद्ध ऋषीसर, सत्यनेमि दृढनेमि सुधन्य ॥ ६॥ प्र०॥ कुमर अनीकजसादिक षट मुनि, गुणगिरुवो श्रीगजसुकमाल ॥ ढंढण ऋषि श्रीथावच्चासुत, सहस साधु संज तसु कृपाल ॥१०॥
दूसरी ढाल-राग धन्याश्री ॥ सहस श्रमणसुसुक संजमधरो, पंचसयांसु सेलग मुनिवरो। सिद्ध थया श्रीपुडरगिरिवरो, करुणाकर प्रणम्यां संपदकरो ॥ उल्लालो ॥ संपद करो समदम रिषीसर साधु सारण सोह ए, अंतर प्रकासे तिमिर नासे, भविकजन मन मोह ए॥ प्रत्येकबुद्ध प्रबुध्ध नारद मुनि प्रमुख पेंताल ए, दमदंत महाऋषि कुजवारे साधु नमुनिहु काल ए॥११॥चाल॥रंग रिषभदत्त रतनत्रय मुणी, समरु देवानंदा साहुणी ॥ पांचे पांडव प्रणम् मुनिपति, केसपएसी बोधक जिनमती॥उल्लालो।
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