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४६० सम्मेत शिखरजीका रास।
आठमी ढाल-देसी विछियानी । हारे लाला श्रीजिनकुशल सूरीसरू-ए देशी ॥ हारे लाला श्रीअरिनाथ जिनेसरू, तिहां नगरी अयोध्या चंदरे लाला ॥ तात सुदर्शन मातजी, नंदादेवीना नंदरे लाला ॥१॥ श्रीअ०॥ लंछन नंद्यावत्तनो, तीस धनुष देहीनो मांन रे लाला ॥ कंचन वरण सुहामणो, आयु सहस चौरासी प्रमाण रे लाला ॥२॥श्री अ०॥ इक लाख श्रावक ऊपरे, वलि संख्या अधको जांणरे लाला ॥ सहस बहुत्तर तीन लक्ष श्राविका संख्या जांणरे लाला ॥ श्रोअ०॥३॥ देव देवी सानिध करे, इक सहस मुनि परवार रे लाला ॥ मुक्ति गए इण गिर प्रभु, कर मास संलेखण सार रे लाला ॥श्रीअ०॥४॥ मिथिला नगर प्रभावती, मात पिता श्री कुंभ राय रे लाला ॥ लंछन कलस पचीसनो, वपु धनुष सोवन सम कायरे लाला ॥ श्रीमल्लिनाथ जिनेसरू ॥ ५॥ सहस
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