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अभय रत्नसार ।
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श्रावणी इम धार जी ॥ न० ॥ १२ ॥ व्यार लाख वलि चवद हजार ए, अंकुसा देवी होय जी || पाताल यक्ष श्रीसंघके सानिध कारी, नित प्रति जाय जी ॥ न० ॥ १३ ॥ आठसे मुनिवरनै परिवारे, शिखरसमेत प्रधान जी ॥ मास संलेखन कर गिरि ऊपर, पुहता पद निरवांण जी
न० ॥ १४ ॥
॥ दूहा ॥ ऐसे धर्म जिसरु, पुहता पढ़ निर्वाण ॥ सिखरसमेत गिरिंद पर, नमो २
जगभांण ॥ १ ॥
सातमी ढाल - जगतगुरु त्रिशलानंदन जी - ए देशी ॥ रत्नपुरी नगरी धणी जी, भानुराय सुजाण ॥ राणी सुव्रत मातने जी, धर्मनाथ गुणखाण ॥१॥ जगतपति धर्म जिनेसर सार, धनुष पैतालीस तनु कह्यो जी ॥ वज्र लंछन सुखकार ॥ ज० चोतीस गणधर मुनि कह्या जो, चौसठ सहस प्रमाँण ॥ श्रमणी बासठ सहसस्यूं जी, श्रदोय
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