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४८२ सम्मेत शिखरजीका रास। णवे गणधर कह्या, साधू त्रिण लाख होय लालरे ॥ च्यार लाख तीस ऊपरे, सहस साधवियां जोय लालरे ॥३॥ श्री० ॥ सहस सतावन लक्षनी, श्रावक संख्या थाय लालरे॥ च्यार लाख वली त्रणवै, सहस श्रावकणी भाय लालरे ॥४॥श्री० मातंगयक्ष शांतासुरी, पांचसे मुनि परवर लालरे॥ करि अणसण मुगते गया, नाम लियां निस्तार लालरे ॥५॥ नगर चंद्रपुर इण परे, राजा तात महेस लालरे ॥ देवी माता लक्ष्मणा, सत चंद्राप्रभु वेस लालरे ॥६॥श्रीचंद्राप्रभु वंदिये, चंद्रवरण तनु जेह लालरे ॥ लंछन चंद्रतणो भलो, धनुष दोढसे देह लालरे ॥ ७॥ श्रीचं०॥ भविककमल प्रतिबोधतां, सेवे सुर नर यक्ष लालरे ॥ दस लाख पूरब आउखो, तेणवे गणधर दक्ष लालर ॥ श्रीचं० ॥८॥ दाय लाख सहस पचाणवे, मुनि श्रमणी तीन लक्ष लालरे ।। असी सहस संख्या कही, श्रावक वलि दोय लक्ष लालरे
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