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अभय रत्नसार।
४८१ पाँच लाख वलि पाँच हजार ए, श्रावकयांरी संख्या सार ए॥ कुसम देव श्यामादेवी कहो, लालवरण तन प्रभु सोहै सही ॥ उल्लालो ॥ सोहए शिखरसमेत ऊपर, आठसे त्रिण मुनिवरा ॥ कर मास संलेखन प्रभुनी, सेव करहै सुरवरा ॥ श्रीपदम प्रभुजी मुक्ति पहुता, गिर शिखर महिमा भई, ॥ तसु चरण पंकज वालवं दे हृदय आनंद गहगही ॥ ५ ॥
॥ दुहा ॥ श्रीसुपास जिनंदना, पद पंकज आराम॥ भविजन भ्रमरसु सेवतां, पामे वंछित कांम ॥१॥
चौथी ढाल-श्रीसीमंधर साहिबा-ए देशी । नगर वणारसी सोभता, राजा तात प्रतिष्ट लालरे । देवी पृथवी मात जी, स्वस्तिक लंछन सिष्ट लालरे ॥ १॥ श्रीसुपार्श्व जिनंद जी, वीस पूरब लख आयु लालरे ॥ धनुष दोयसै देहनो, कंचनवरण सुहाय लालरे ॥ २॥ श्री० ॥ पचा
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