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अभय रत्तसार।
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॥ ६॥ श्री० ॥ लाख पचास ऊपर वली, श्राविका चउ लक्ष धार लालरे ॥ सहस इकाणवै ऊपरै, प्रभुजोना परिवार लालरे ॥१०॥ श्रीचं०॥ विजयदेव भृकुटोसुरी, सहस साधु परिवार लालरे ॥ संलेखन इक मासनी, पुहता मुक्ति मझार लालरे ॥ ११॥ श्री०॥
॥ दुहा ॥ जय श्रीसुविधि जिनेसरु, जगपति दीनदयाल ॥ समेतशिखर मृगते गया, भविजनके प्रतिपाल ॥१॥
पांचमी ढाल-श्रीविमलाचल सिरतिलो-ए देशी ।
नयर काकंदी नरपति, एम पिता सुग्रीव ॥ देवो रामा माता सुत, भए सुविध सुभ जीव ।। १॥ रजतवरण सम तनु सत, धनुष एक परिमांण ॥ दोय लाख पूरब कह्यो, प्रभुनो आयु सुजांण ॥ २ ॥ अव्यासी संख्या भए, गणधर परम प्रधान ॥ लख दोमुनि विंशति सहस, इक लख श्रमणी जाण ॥ ३॥ दोय लक्ष श्रावक कह्या,
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