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अभय रत्नसार। ४७३ खंतसं ए, बिंब जुहारु अनेक ॥ नेमनाथ चवरी नमं ए, टालं अलग उदेग ॥ से० ॥ ६ ॥ धरम दुवारमांहिं नीसरू ए, कुगति करू अतिदूर ॥ भाउ आदिनाथ देहरे ए, करम करू चकचर ॥ से० ॥ १० ॥ मूलनायक प्रणमं मुदा ए, आदिनाथ भगवंत ॥ देव जुहार देहरे ए, भमतीमांहे भमंत ॥ से० ॥ ११॥ शत्रुजय ऊपर कीजिये ए, पांचे ठाम स्नात्र ॥ कलश अठोतर सो करिये, निरमल नीरसु गात्र ॥ से०॥ १२ ॥ प्रथम आदीसर आगले ए, पुंडरीक गणधार ॥ रायण तल पगला नमूए, चोमुख प्रतिमा च्यार ॥१३ से० ॥रायण तल पगला नमू ए, चोमुख प्रतिमा च्यार ॥ बीजी भूमि बिंबावली ए, पुडरीक गणधार ॥ १४ ॥ से० ॥ सूरजकुंड निहालिये ए, अति भली उलकाझोल ॥ चेलणतलाइ सिद्ध शिला ए, अंग फरसु उल्लाल ॥ १५ ॥ से० ॥ आदिपुर पाज उतरू ए, सिद्धवडलू वि
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