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अभय रत्नसार। आदिनाथनी पूजा करे, प्रह ऊठी बहू वेलो जी ॥ से० ॥७॥ देव गुरुनो धन जे हरे, ते शुद्ध थाये एमो जी ॥ अधिको द्रव्य खरचे तिहां, पात्र पोषे जह प्रेमो जी॥से ॥८॥गाय भैस घोड़ा मही, गज ग्रह चारणहारो जी॥ये ते वस्तु तीरथे, अरिहन्त ध्यान प्रकारो जी ॥ से०॥ ॥ पुस्तक देहरा पारका, तिहां लिखे अपणो नामो जी ।। छूट छम्मासी तप कियां, सामायक तिण ठामो जी॥ से० ॥ १० ॥ कुवारी परिव्राजका, सधव अधव गुरुनारो जी ॥ व्रत भांज तेहने कयो, छम्मासी तप सोरो जी॥ ११॥ से०॥ गो विष स्त्री बालक ऋषि, एइनो घातक जेहो जी॥ प्रतिमा आगे आलोवतां, छूट तप कर तेहो जी॥ १२॥ से०॥
छट्ठी ढाल । संप्रति काले सोलमो ए, ए वरते छ उद्धार ॥ शत्रु जय यात्रा करू ए, सफल करू
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