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४७० श्रीशत्रुजयका रास ।
पांचमी ढाल । शत्रुजय गयां पाप टिये, लीजे आलोयण एमो जी, तप जप कीजे तिहारही, तीर्थंकर कह्यो तेमो जी॥ से० ॥ १॥ जिण सोनानी चोरी करी, ए आलोयण तासो जी ।। चैत्रीदिन सत्र जा चढी, एक करे उपवासो जी ॥ से० ॥२॥ वस्तुतणी चोरी करी, ए आलोयण तासो जी॥ चैत्रीदिन सेत्र जा चढी, एक करे उपवासो जी ॥३॥ से०॥ कांसी पीतल तांबा रजतनी, चोरी कीधी जेणे जी ॥ सात दिवस पुरिमढ़ढ़ करे, तो छूटे गिरि एणो जी ॥ ४॥ से०॥ मोती प्रवाला मुगिया, जिण चोरथा नर नारी जी ॥ आंबिल कर पूजा करे, त्रिण टङ्क शुद्ध आचारो जी ॥ ५॥ से०॥धान पाणी रस चो रिया, ते भेटे सिद्धक्षेत्रो जी ॥ सेतुजा तलहटी साधुने, पडिलाभे सुध चित्तो जी ॥ से०॥६॥ वस्त्राभरण जिणे हरया, ते छटे इण मेलो जी॥
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