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४६६ श्रोशत्रुजयका रास।
चौथी ढाल-राग सिंधूडो आशावरी ।। __ भरततणे पाट आठमें, दंडवीरज थयो रायो जी॥ भरततणी पर संघ कियो, से–जा संघवी कहायो जी॥१॥शत्रं जय उद्धार सांभलो, सोल मोटा श्रीकारो जी ॥ असंख्यात बीजा वली, तेन कहुं अधिकारो जी॥ से० ॥ २॥ चैत्य करायो रूपातणो, सोनानो बिंब सारो जी ॥ मूलगो बिब भंडारीयो, पछिमदिसि तिण बारो जी॥ से० ॥३॥ शत्रुजयनी जात्रा करी, सफल कियो अवतारो जी॥ दंडवीरज राजातणो, ए बीजो उद्धारो जी ॥ से०॥४॥सो सागरोपम व्यतिक्रम्या, दंडवीरज थी जीवाडोजो। इशानेन्द्र करावियो, ए तीजो उद्धारो जी ॥ से० ॥ ५ ॥ चोथा देवलोकनो धणी, माहेंद्र नाम उदारो जी॥ तिण सेव॒जानो करावियो, ए चोथो उद्धारो जी ॥से०॥६॥ पांचमा देवलोकनो धणी, ब्रह्मद्र समकितधारो जी॥ तिण सेत्रुजानो करावियो,
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