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अभय-रत्नसार।
४६५ मननी आस ॥ ११॥ नयणे निरख्यो सेत्रंजाराय, मणि माणिक मोत्यांसुवधाय॥ तिण ठांमे रहो महोछव कियो, भरते आणंदपुर वासियो ॥१२॥ संघ शत्रंजय ऊपर चढ्यो, फरसंता पातिक झड़ पड्यो ॥ केवलग्यानी पगला तिहाँ,प्रणम्यां रायणरूख छे जिहां ॥ १३॥ केवलज्ञानी स्नात्र निमित्त, ईशानेंद्र आणी सुपवित्त ॥ नदी सेजे सोहामणी, भरतें दीठी कौतुक भणी ॥ १४ ॥ गणधरदेव तणे उपदेश,इंद्र वलि दीधो आदेश। श्रीआदिनाथतणो देहरो, भरत करार्या गुरिसेहरो ॥१५॥ सोनानो प्रसाद उत्तंग, रतनतणी प्रतिमा मनरंग ॥ भरते श्री आदिसरतणी, प्रतिमा थापी सोहामणी ॥ १६॥ मरुदेवानी प्रतिमा वली, माही पूनम थापी रली॥ ब्राम्ही सुन्दरि प्रमुख प्रसाद, भरते थाप्या नवला नाद ॥१७॥इम अनेक प्रतिमा प्रसाद, भरते कराया गुरु सुप्रसाद ॥ भरततणो पहिलो उद्धार, सगलोही जाणे संसार ॥ १८ ॥
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