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श्रीशत्रुंजयका रास ।
किये ॥ ४ ॥ भरत कहे संघवीपद मुझ, थे आपो हूं अंगज तुझ ॥ इन्द्र आण्या अक्षतवास, प्रभु आप संघवीपद तास ॥ ५ ॥ इन्द्र तिरण बेला ततकाल, भरत सुभद्रा बिहु ने माल ॥ पहिरावी घर संप्रे डीया, सकल सोनाना रथ आपिया ॥ ६ ॥ रिषभदेवनी प्रतिमा वली, रत्नतरणी दीधी मन रली || भरते गणधर घर तेडिया, शांतिक पौष्टिक सहु तिहां किया ॥ ७ ॥ कोत्री मूकी सहु देस, भरत डायो संघ सेस ॥ आयो संघ अयोध्यापुरी, प्रथमथकी रथजात्रा करी ॥ ८ ॥ संघ भक्ति कीधी प्रतिघणी, संघ चलायो शत्रुंजय भणी ॥ गणधर बाहूबल केवली, मुनिवर कोड साथै लिया वली ॥ ६ ॥ चक्रवर्त्तिनी सघली ऋद्धि, भरते साथ लीधी सिद्ध ॥ हय गय रथ पायक परिवार, ते तो कहतां नावे पार ॥ १० ॥ भरतेत्तर संघवी कहवाय, मारग चैत्य ऊधरतो जाय ॥ संघ आयो सेजा पास, सहुनी पूगी
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