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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्तसार । ४६३ रे॥ से० ॥ १०॥ असंख्याता मुनि शत्रं जय सीधा, भरतेसरने पाट रे ॥राम अने भरतादिक सीधा, मुक्तितणी ए वाट रे ॥ से०॥ ११ ॥ जालि मयालीने उवयाली, प्रमुख साधुनी कोडि रे ॥ साधु अनंता शत्रुजय सीधा, प्रणमुबे कर जोडि रे ॥ से० ॥ १२ ॥ तीसरी ढाल-चौपाइकी। ॥ शत्रुजयना कहुं सोल उद्धार, ते सुणज्यो सहुको सुविचार ॥ सुणतां आणंद अङ्ग न माय, जनमरना पातिक जाय ॥१॥ ऋषभदेव अयोध्यापुरी, समवसख्या स्वामी हित करी॥ भरत गयो वन्दणने काज, ये उपदेश दियो जिनराज ॥२॥ जगमांहे मोटा अरिहन्त देव, चोसठ इंद्र करे जसु सेव ॥ तेहथो मोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमें जिनवरराय ॥३॥ तेहथी मोटो संघवी कह्यो, भरत सुणीने मन गहगह्यो । भरत कहे ते किम पांमिये, प्रभु कहे शत्रुजय जात्रा For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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