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४६० श्रीशत्रुजयका रास। तहतीकः॥ विमलाचलने करू प्रणाम, ए सेत्रंजैना इकवीस नाम ॥१॥ सुरगिरिने महागिरि पुण्यरास, श्रीपदपर्वत इंद्रप्रकाश ॥ महातीरथ पूरवे सुखकाम ॥ ए० ॥ २ ॥ सासतो पर्वतने दृढशक्ति, मुक्तिनिलो तिण कीजे भक्ति ॥ पुष्पदन्त महापद्म सुठांम ॥ ए. ॥३॥ पृथ्वी पीठ सुभद्र कैलाश, पातालमूल अकर्मक तास ॥ सर्व काम कीजे गुणग्रांम॥ए०॥४॥श्रीशनंजयना इकवीस नांम, जपेज वेठा अपने ठाम ॥ शत्रुजय जात्रानो फल ते लहे, महावीर भगवन्त इम कहे ॥ ए. ॥ ५
॥ दूहा ॥ सेव॒ञ्जो पहिले अरे, असी जोयण परिमाण ॥ पिहलो मूल उंचपण, छब्बीस जोयण जांण ॥ १॥ सत्तर जोयण जाणवो, बीजे अरे विसाल ॥ वीस जोयण उचो कह्यो, मुझ वन्दना त्रिकाल ॥ २॥ साठ जोयण तीजे अरे, पिठुलो तीरथराय ॥ सोल जोयण उचो
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