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अभय रत्नसार। श्री शJञ्जय का रास।
दूहा ॥ श्रीरिसहेसर पाय नमी, आणी मन आनंद ॥ रास भणू रलियामणो, सेव॒जानो सुखकंद ॥ १ ॥ संवत च्यार सतोतरे, हुआ धनेश्वर सूर ॥ तिण सेत्रुञ्जा माहातम कियो, शिला दैत्य हजूर ॥२॥ वीर जिणंद समवसस्या, सेत्रुञ्जा ऊपर जेम ॥ इंद्रादिक आगल कह्यो, सेत्रुझा महातम एम ॥ ३ ॥ सेव॒जा तीरथ सारिखो, नही छे तीरथ कोय ॥ स्वर्ग मृत्यु पातालमें, तीरथ सगला जाय ॥ ४ ॥ नांमे नव निध संपजे, दीठा दुरित पुलाय ॥ भेटता भव भय टले, सेवंता सुख थाय ॥५॥ जंब नामे द्वीप ए, दक्षिण भरत. मझार ॥ सोरठ देस सुहामणो, तिहां छे तीरथ सार.॥ ६॥
___ पहली ढाल-राग रामगिरी। ॥ सेव॒जोने. श्रीपुण्डरीक, सिद्धक्षेत्र कहूं
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