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अभय रत्तसार।
सही, ध्यान धरूं चित लाय ॥३॥ पचास जोयण पिहुलपण, चोथे अरे मझार, उंचो दस जोयण अचल, नित प्रणमें नर नार ॥४॥बार जोयण पंचम आरे, मूलतणे विसतार ॥ दो जोयण उंचो अछे, सेत्रो तीरथ सार ॥ ५ ॥ सात हाथ छठे आरे,पिहुलो परवत एह ॥ उंचो होस्ये सो धनुष, सासतो तीरथ एह ॥६॥
दूसरी ढाल । केवलनाणी प्रमुख तीर्थकर, अनन्त सीधा इण ठाम रे ॥ अनन्त वली सिझस्ये इण ठामे, तिण करूनित परणाम रे ॥१॥ शत्रु ञ्जय साधू अनन्ता सीधा, सीझसी वलिय अनन्त रे ॥ जिण शत्रुञ्जय तीरथ नही भेट्यो,ते गरभावास कहन्तरे ॥ से० ॥२॥ फागुण सुदि आठमने दिवसे, ऋषभदेव सुखकार रे॥ रायणरूख समोसस्या स्वामी, पूर्व निनाणू वार रे ॥से० ॥ ३॥ भरतपुत्र चैत्री पुनम दिन, इण सेत्रंज
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