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अभय-रत्नसार।
४५७ ए ॥ देवां धुर अरिहंत नमीजें, विनय पहू उवझाय थुणीजें, इण मंत्रे गोयम नमो ए ॥४३॥ परघर वसतां काय करीजे, देस देसांतर काय भमी जें, कवण काज आयास करो ॥ प्रह ऊठी गोयम समरीजें, काज समग्गल ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तिहां घरे ए॥४४॥ चवदयसय बारोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसें, कीयो कवित उपगारपरो ॥ आदहिं मंगल ए पभणीजें, परव महोच्छव पहिलो दीजें, रिद्धि-वृद्धि कल्याण करो ॥ ४५ ॥ धन माता जिण उयरे धरियो, धन्य पिता जिण कुल अवतरियो, धन्य सुगुरु जिण दीक्खियो ए ॥ विनयवंत विद्या भंडार, तसु गुण पुहवी न लब्भइ पार, बड जिम साखा विस्तरो ए॥ गोयमखामोनो रास भणीजें, चउविह संघ रलियायत कीजं, रिद्धि-वृद्धि कल्याण करो ॥ ४६ ॥ कुंकुम चन्दन छडो दिवरावो, माणक मोतीना चोक
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