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४५६.
स्तवन- संग्रह । -
जिम सुरतरुवइ करणयवतंसा, जिम महुयर राजीववनें || जिम रयणायर रयणं विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुरु केल घने ॥ ३६ ॥ पूनमनिसि जिम ससियर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जगमांहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो || पंचानन जिम गिरिवर राजे, नर वइ घर जिम मेगल गाजे, तिम जिनशासन मुनि पवरो ॥ ४० ॥ जिम गुरु तरुवर सोहे साखा, जिम उत्तम मुख मधुरी भाषा, जिम वन के कि महमहे ए ॥ जिम भूमीपती भुयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, गोयमलबधें गहगह्यो ए ॥ ४१ ॥ चिंतामणि कर चढीयो आज, सुरतरु सारे वंधिय काज, कामकुंभ सहु वशि हुआ ए ॥ काम गवी पूरे मन कामी, अष्टमहासिद्धि आवे धामी, सामी गोयम अणसरी ए ॥ ॥ ४२ ॥ प्रणव अक्षर पहिलो पभणी जें, माया बीजो श्रवण सुखी जें ॥ श्रीमिति साभा संभवो
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