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स्तवन- संग्रह |
गवर गंग रतिहां विधि वचिय ॥ ५ ॥ नय बुध नय सरकविण कोय जसु आागल रहियो, पंच सयां गुण पात्र छात्र होंडे परवरियो ॥ करय निरंतर यज्ञ करम मिथ्यामति मोहिय, अरा चल होसे चरमनाण, दंसह विसोहिय ॥ ६॥ वस्तु ॥ जंबूदीव जंबूदीव भरह वासम्मी खोणी तल मंडण, मगह देस सेणिय नरेसर, वरगुव्वर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभृद्द, सुंदर तसु पुहवि भज्जा सयल गुण गण रूव निहाण, ताण पुत्त विज्जा निलो. गोयम अतिही सुजाण ॥ ७ ॥ भास ॥ चरम जिनेसर केवलनाणी, चौविहसंघ पट्टा जाणी || पावापुरसामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिं जुत्तो ॥ ८ ॥ देवहि समवसरण तिहां किजें, जिस दीठे मिथ्यामत छीजे ॥ त्रिभुवनगुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंत पइड्डा ॥ ६ ॥ क्रोध मान माया मदपूरा, जाये नाठा जिम दिनचोरा ॥ देव दुन्दुभि आगासें
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