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अभय रत्नसार।
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णहु भा भविया, जिम निवसे तुम देह गेह गुण गण गह गहिया ॥१॥ जंबुदीव सिरि भरहखित्त खोणी तल मंडण. मगहदेस सेणिय नरेस रिउदल बलखंडण ॥ धणवर गुठवर गाम नाम जिहां गुणगणसजा, विप्प वसे वसुभूइ तत्थ तसु पुहवी भजा ॥ २ ॥ ताणपुत्त सिरहंद भूय भूवलयपसिद्धो, चवदह विज्जा विवहरूब नारी रस लुद्धो॥ विनय विवेक विचार सार गुण गणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह रूवहि रंभा वर ॥ ३॥ नयणवयण कर चरण जणवि पंकज्जलपाड़िय, तेजहिं तारा चंद सूरि आकास भमाड़िय ॥ रूवहि मयण अनंग करवि मेल्यो निरधाडिय, धीरम मेरु गंभीर सिंधु चंगम चयचाडिय ॥ ४॥ पेखवि निरुवम रूव जास जण जपे किंचिय, एकाकी किल भीत्त इत्तथ गुण मेल्या संचिय॥ अहवा निच्चयपुव जम्म जिणवर इण अंचिय रंभा पउमा
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