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स्तवन- संग्रह |
वित्त, पर उपगार करो शुभवित्त ॥ १७ ॥ दिवस चरिम करजे चौविहार, चारे आहार तरणी परिहार । दिवस तणां लोए पाप, जिम भांजे सघला संताप ॥ १८ ॥ संध्यायें आवश्यक साचवे, जिनवर चरण शरण भव भवें ॥ चारे शरण करी दृढ होय, सागारी असण ले सोय ॥ १६ ॥ करे मनोरथ मन एहवा, तीरथ शत्रुंजे जायवा ॥ समेतशिखर आबू गिरनार, भेटीश हुं धन धन अवतार ॥२०॥ श्रावकनी करणी छे एह, एहथी था भवन ह ॥ आठे कर्म पड़े पातलां, पाप तरणा छुटे आमला ॥ २१ ॥ वारु लहियें अमर विमान, अनुक्रमें पामे शिवपुर धाम ॥ कहे जिनहर्ष घर ससनेह, करणी दुःखहरणी के एह ॥ २२॥
॥ गौतम स्वामीका बड़ा रास ॥
|| वीर जिणेसर चरण कमल कमलाकय वासो, पणमवि पभणिसुं सामी साल गोयम गुरुरासो ॥ मणतण वयणे एकंद करवि निसु
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