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अभय रत्नसार। ४४१ ॥ सोलह सतीओं का छंद ॥ आदिनाथ आदि देइ जिनवर वांदी, सफल मनोरथ कीजिये ए॥ प्रभात ऊठी मंगलीक काजे, सोले सती नाम लीजिये ए॥१॥बालकुमारी जग हितकारो, ब्राह्मी भरतनी बहिनड़ी ए॥घट २ व्यापक अक्षररूपे, सोल सती माहि जे वड़ी ए ॥ २॥ वाहुबल भगनी सतिय शिरोमणि, सुंदरी नामे ऋषभ सुता ए ॥ अंग स्वरूपी त्रिभु वनमांहे, जेह अनोपम गुणयुताए ॥३॥चंदनबाला बालपणेथी, शीलवती शद्ध श्राविका ए॥ उड़दना बाकला वीर प्रति लाभ्या, केवल लहि व्रत भाविका ए॥ ४॥ उग्रसेन धूआ घारणी, नंदन राज्यमती नेम वल्लभा ए॥ योवन वेशें कामने जीती, संजम लेइ देव दुल्लभा ए॥ ५ ॥ पंच भरतारी पांडव नारी, द्रुपदा नाम वखाणिये ए॥ एकसो आठे चीर पुराणा, शोल महिमा तसं जाणिये ए॥६ । दशरथ नपनी नारि निरोपम,
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