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स्तवन- संग्रह |
विरुया वंकड़ा तस नामे नावे ढुंकडा ॥ भूत प्रेत नवी मंडे प्राण. ते गौतमना करूं वखाण ॥३॥ गौतमनां निरमल काय, गौतम नांमे वाधे आय ॥ गौतम जिनशासन सिणगार, गौतम नांमे जय२ कार || ४ || शाल दाल सदा घृत घोल, मनवंछित कप्पड तंबोल ॥ घरे सुघरणी निरमल चित्त, गौतम नांमे पूत्र विनीत ॥ ५ ॥ गौतम उदयो अविचल भांण, गौतम नाम जपो जगजाण ॥ मोटा मंदिर मेरु समान, गौतम नांमे सफल विहाय ॥ ६ ॥ घर मयगल घोड़ानी जोड़, वारू विलसे वंछित कोड़ि || महियल मांने मोटा राय, जो पूजे गौतमना पाय ॥ ७ ॥ गोतम प्रणम्यां पातिक टले, उत्तम सरसी संगत मिले ॥ गौतम नां निर्मल ज्ञान, गौतम नांमे वाधे वान ॥८॥ पुण्यवंत अवधारो सह, गुरु गौतमना गुण छ बह ॥ कहे लावण्य समय कर जोड़ि, गौतम पूज संपत को कोड़ि ॥६॥
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