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अभय-रत्नसार ।
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कुरंग || कहां विश्वनाथं किहां अन्य देवा, करो एक चित्ते प्रभु पार्श्व सेवा ॥ ४ ॥ पूजो देव प्रभावती प्राणनाथं, सह जीवने करे सह सनाथं ॥ महातत्व जाणी सदा जेह ध्यावे, तेहना दुक्ख दालिद्र दूरे गमावे ॥ ५ ॥ पांमी मानुषीने वृथा क्यु गमो छो, कुशीले करी देहने कां दमो छो, नहि मुक्ति वासं विना वितरागं ॥ भजो भगवंतं तजो दृष्टिरागं ॥ ६ ॥ उदय रत्न भाखे महा हेत आणी दयाभाव कीजे मोहि दास जांणी ॥ मोरे आज मोतोअडे मेह छूठा, प्रभु पास संखेसरो आप तुटा ॥ ७ ॥
गौतम स्वामीका छोटा रास ।
॥ वीर जिनेसर केरो शीश, गोतम नांम जपो निश दीश ॥ जो कीजे गौतमनो ध्यांन, से घर विलशे नवे निधान ॥ १ ॥ गौतम नांमे गिरवर चढे, मन वंछित लीला संपजे ॥ मौतम नांमे नावे रोग, गौतम नांमे सर्व संजोग ॥ २॥ जे वैरी
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