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स्तवन-संग्रह। धारी वारो विषय विकार॥ त्रस थावर पीहर लोकमांहि ते साध, त्रिविधे ते प्रणमं परमारथ जिण लाध ॥ ६॥ अरि हरि करि साइण डाइण भूत वेताल,सब पाप पणासे विलसे मंगलमाल ॥ इण समस्यां संकट दूर टले ततकाल, जंपेजिण गुण इम सुरवर सीस रसाल ॥७॥ ॥ श्रीसंखेश्वरा पार्श्वनाथ-स्तवनं ॥ (छद)
॥ सेवो पास संखेसरो मन शुद्धे, नमूं नाथ निश्चे करी एक बुधे ॥ देवी देवता अन्यने शु नमो छो, अहो भव्य लोको भुला कां भमो छो॥ १॥ त्रैलोक्यना नाथने सुं तजो छो, पड्या पाश मे भूतड़ांने भजो छो ॥ सुराधेनु छंडी अजाने अजोछो, महापंथ मंकी कुपंथे ब्रजोछो॥२॥ तजे कोण चिंतामणी काच माटे, ग्रहे कोण रशभने हस्ति साटे॥ सुरद्रुम ऊपाड़ने आक वावे, महामूढ ते आकुला अंत पावे ॥३॥ किहां कांक रोने ज किहां मेरु शृग, किहां केशरीने किहांते
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