________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय - रत्नसार ।
४३७
॥
जिनशासन आगम चवदे पूरव सार ॥ इण मंत्रनी महिमा कहितां न लहुं पार, सुरतरु जिम चिंतित वंछितफल दातार ॥ १ ॥ सुर दानव मानव सेव करे कर जोड़, भूयमंडल विचरे तारे भवियण कोडि || सुरछंदे विलसे अतिशय जास अनंत, पहिले पद नमिये अरि गंजन अरिहंत ॥२॥ जे पनरे भेदे सिद्ध थया भगवंत, पंचमि गति पुहता अष्ट कर्म करि अंत ॥ कल कल सरूपी पंचानंतक जेह ॥ सिद्धना पाय प्रणमुं बीजे पद वलि एह ॥ ३ ॥ गच्छमार धुरंधर सुंदर शशिहर शोम, कर शारणवारण गुण छत्तीसे थोम ॥ श्रुत जांग शिरोमण सागर जेम गंभीर, तीजे पद नमिये आचारज गुण धीर ॥ ४ ॥ श्रुतधर गुण आगम सूत्र भरणाचे सार, तप विध संयोगे भाखे रथ विचार ॥ मुनिवर गुणयुत्ता ते कहिये उवझाय, चोथे पद नमिये अहनिश तेहना पाय ॥ ५ ॥ पंचाश्रव टाले पाले पंचाचार, तपसी गुण
For Private And Personal Use Only