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अभय रत्तसार।
शुभ लगन शुभ वेला वास, पव्वासण बेठा श्री पास ॥ महिमा मोटो मेरु समान, एकलमिल वगडे रहे वान ॥३७ ॥ वात पुराणी में सांभली, तवनमांहि सूधी सांकली। गोठीतणा गोतरिया अछे, यात्रा करीने परणे पछे॥ ३८॥
॥ दूहा ॥ विघन विडारण जक्ष जगि, तेहनो अकल सरूप ॥ प्रीत करे श्रीसंघने, देखाड़े निज रूप ॥ ३६॥ गिरओ गौड़ीपास जिन, आपे अरथ भंडार ॥ सानिध करे श्रीसंघने, आस्सा पूरणहार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय, नीलो थइ असवार ॥ मारग चूका मानवी, वाट दिखावणहार ॥४१॥
॥ढाल ४॥ वरण अढार तणो लहे भोग, विघन निवारे टाले रोग ॥ पवित्र थइ समरे जे जाप, टाले सघला पाप संताप ॥ ४२ ॥ निरधनने घर धननो सूत, आप अपुत्रियाने पूत ॥ कायरने सूरापणो धरे, पार उतारे लच्छी वरे ४३
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