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४३२ स्तवन-संग्रह। श्रीफल सजल तिहां किल जुओ, अमृत जल निसरिस्ये कूओं॥ खाराकूआ तणो इह सैनांण, भूमि पड्यो छे नीलो छाण ॥ ३०॥ सिलावटो सीरोही वसे, कोढ पराभवियो किसमिसे ॥ तिहांथकी तूं इहां आणजे, सत्य वचन माहरो मानजे ॥३१ गोठीनो मन थिर थापियो, शिलाबटने सुहणो दियो॥ रोग गमीने पूरूँ आस, पास तणो मंडे आवास ॥ ३२ ॥ सुपनमांहि मांन्यो ते वेण, हेम वरण देखाड्यो नेण ॥ गोठी मनह मनोरथ हुआ, सिलावटने गया तेड़वा ॥ ३३ ॥ सिलावटो आवे सूरमो, जीमे खीर खाँड घृत चूरमो॥ घड़े घाट करे कोरणी, लगन भले पाया रोपणी ॥३४॥ थंभ २ कीधी पूतली, नाटक कौतुक करती रली ॥ रंग-मंडप रलियामणो रचे, जोतां मानवनो मन वसे ॥३५॥ नीपायो पूरो प्रासाद, स्वर्ग समो मंडे आवास ॥ दिवस विचारी इंडो घड्यो, ततखिण देवल ऊपर चढ्यो ॥ ३६॥
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