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अभय रत्नसार ।
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वी ऊजाड़ || महिमा थास्ये अति घणी, प्रतिमा तिहां पहुंचाड़ ॥ २३ ॥ कुशल क्षेम तिहां अछे, तुमने मुझने जांण, संका छोड़ी काम कर, करतो मकरी संकांणि ॥ २४ ॥
ढाल || पास मनोरथ पूरा करे, वाहण एक वृशभ जोतरे ॥ परिकरथी परियाणो करे, एक थल चढ़ि बीजो उबारे ॥ २५॥ वारे कोस आ व्यां जेतले, प्रतिमा नवि चाले तेतले ॥ गोठी मनह विमासा थइ, पास भवन मंडावं सही ॥ २६ ॥ अटवी किम करू प्रयाण, कटको कोइ न दीसे पाहाण || देवल पास जिनेसर तणो, मंडावं किम घरथे विणो ॥ २७ ॥ जल विन श्रीसंघ रहस्ये किहां, सिलावटो किम आवे इहां ॥ चिंतातुर थयो निद्रा लहे, यक्षराज आवी इम कहे ॥ २८ ॥ गली ऊपर नाणो जिहां, गरथ घणो जाणीजे तिहां ॥ स्वस्तिक सोपारीने ठाणी, पाहण ती उलटस्ये खांणी ॥ २६ ॥
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