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४३०.
स्तवन -संग्रह ।
पाटणमांहे सारथवाह, होंडे तुरकने जोतो जी ॥ ए० ॥ १६ ॥ तुरके जातो दीठो गोठी, चोखा तिलक लिलाडे जी ॥ संकेत पहुतो साचो जाणी, बोलावे बहु लाडे जी ॥ ए० ॥ १७ ॥ मुझ घर प्रतिमा तुझने आपूं, श्रीपास जिनेसर केरी जी ॥ पांचसे टक्का जो मुझ आपे, तो मोल न मांगू फेरी जी ॥ ए० ॥ १८ ॥ नाणो देइ प्रतिमा लेइ, थानक पहुतो रंगे जी, केशर चंदन मृगमद घोली, विधसुं पूजा रंगे जी ॥ ए० १६ ॥ गादी रूडी रूनी कीधी, ते मांहि प्रतिमा राखे जी ॥ अनुक्रम आव्या परिकर मांहे, श्रीसंघने सुर साखे जी ॥ ए० ॥ २० ॥ उच्छव दिन २ अधिका थाये. सत्तर भेद सनात्रो जी ॥ ठांम २ ना दरसण करवा, वे लोक प्रभातो जी ॥ ए० ॥ २१ ॥
दूहा ॥ इक दिन देखे अवधि, परिकर पुरनो भंग ॥ जतन करू प्रतिमा तो, तीरथ छे अभंग ॥ २२ ॥ सुहणो आपे सेठने, थल अट
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