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अभय रत्नसार । ४२३ जावरो, अमीझरो रे ॥ जीरावलो जगनाथ ॥ तो० ॥ त्रैलोक्य दीपक देहरो, जात्रा करो रे॥ राणपुरे रिसहेस ॥ ती० ॥६॥श्रीनाडुलाई जादवो, गोडी स्तवो रे ॥ श्रीवरकाणो पास ॥ ती. नंदीश्वरनां देहरां, बावन भलां रे ॥ रुचक कुंडल चारू चार ॥ ती० ॥७॥ शाश्वती अशाश्वती, प्रतिमा छती रे ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ ती० ॥ तीरथ जात्रा फल तिहां, होजो मुझ इहां रे ।। समयसुन्दर कहे एम ॥ ती० ॥८॥
॥ महावीर स्वामीके पारणाको स्तवन ।
॥ दूहा ॥ श्रीअरिहंत अनंत गुण, अतिशय पूरण गात्र ॥ मुनि जे ज्ञानी संजमी, कहिये उ. त्तम पात्र ॥ १॥पात्रतणी अनुमोदना, करतो जीरणसेठ ॥ श्रावक अच्युत गति लहे, नवग्रे. वेका हेठ ॥२॥ दस चउमासा वीरजी, विचरत संजम वास ॥ विशालापुर आविया, इग्यारमी च उमास ॥ ३॥ ढाल ॥ चोमासी इग्यारमी जी,
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