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स्तवन- संग्रह |
विचरत साहसधीर ॥ विशालापुर बाहरे जी, व्या श्रीमहावीर ॥ १ ॥ जगतगुरु त्रिशलानंदन जो, भले में भेट्या श्रीजिनराय ॥ सखीरी चोक पूरावो आय, मेरे भाग्य अनोपम माय ॥ ज० ॥ २ ॥ बलदेवनो के देहरो जी, तिहां प्रभु काउसग्ग लीध ॥ पच्चक्खाण चोमासनो जी, स्वामीए तप कोध ॥ ज० ॥ ३ ॥ जीरणसेठ तिहां वसे जी, पाले श्रावकधमं ॥ आकारे तिण ओलख्या जी ॥ जाणे श्रीजिन मर्म ॥ ज० ॥ ४ ॥ आज उपवासोया जी, स्वामी श्रीवर्द्धमांन काले सही प्रभु जीमस्ये जो, से हाथे देस्युं दान ॥ ज० ॥ ५ ॥ सदा सेठ इम चिंतवे जो, होसी सफल मुझ आस ॥ पक्ष मास गिरणतां थकां जीपूरी थइ चोमास ॥ ज० ॥ ६ ॥ सामग्री आहारनी जो, जोरण कोधो तइयार ॥ प्रभुनो मारग देखता जी, बेठो घरने बार ॥ ज० ॥ ७ ॥ घर आवे पाहुणो जो निहुत्यो एक वार ॥ प्रभुजी
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