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स्तवन- संग्रह |
॥ श्रीतीर्थ मालाका स्तवन ॥
॥ शत्रुंजय ऋषभ समोसस्था, भला गुण भय्या रे ॥ सिद्धा साधु अनंत, तीरथ ते नमुं रे ॥ तीन कल्याणक तिहां थयां, मुगतें गया रे नेमीसर गिरनार ॥ ती० ॥ १ ॥ अष्टापद एक दे हरो, गिरिसेहरो रे ॥ भरतें भराव्यां बिंब ॥ ती०
चौमुख अति भलो, त्रिभुवन तिलो रे ॥ विमल वइस वस्तुपाल ॥ ती० ॥ २ ॥ समेतशिखर सोहामणो, रलियामरणो रे || सिद्धा तीर्थंकर वीश ॥ ती० ॥ नयरी चंपा निरखीयें, हैये हरखीयें रे ॥ सिद्धा श्रीवासुपूज्य ॥ ती० ॥ ३ ॥ पूर्व दिशें पावापुरी, ऋद्धे भरी रे ॥ मुक्ति गया महावीर ॥ ती० ॥ जेसलमेर जुहारीयें, दुःख वारीयें रे ॥ अरिहंत बंब अनेक || ती० ॥ ४ ॥ बिकाने रज वंदीयें, चिर नंदीयें रे ॥ अरिहंत देहरां आठ ॥ ती० ॥ सोरिसरो संखेसरो, पंचासरो रे फलोधी थंभण पास ॥ ती० ॥ ५ ॥ अंतरिक अं
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