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स्तवन- संग्रह |
नया कमलदल पांखडी प्रभु, मुखड़ो पूनमचन्द ॥ दीपशीखासी नासिका काइ, दीठा परमानंद ॥ मो० ॥ २ ॥ कांने कुंडल गिमिंगे प्रभु, कंठे नवसर हार ॥ चंपकली सोहे भली कांइ, मुखर्डे ज्योत अपार ॥ मो० ॥ ३ ॥ तू है जगनो वाल हो प्रभु, थारे सेवग कोड || म्हारे तंहिज साहि वो कांइ, वंदू बेकर जोड, ॥ मो० ॥ ४ ॥ आज मनोरथ सब फल्या, में दीठा श्रीजिनराज ॥ सदानंद पाठक तरणा कांइ, सीधां सगलां काज ॥ मो० ॥ ५ ॥
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॥ ग्यारहवां पद ॥
जिनजी महिर करोने राज, दरसण वहिलो दीजै ॥ दीजै २ जी महाराज, कारज सगला सी ॥ ए करणी ॥ मुझ मन भमरतणी पर मोह्यो, छोड़ायो नवि छूटै ॥ प्रेम राग बंधारणो पूरण, ते तो कदेय न खूटै ॥ जि० ॥ १ ॥ अलगथकां पिण हूं प्रभु तुमने, नहिय विसारु दिल
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