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अभय रत्नसार। वसियो, रात दिवस थारा गुणनो छू रसियो राज ॥ सु०॥२॥ खिजमतगारो प्रभुजी चाकर छू खासो, कदिय न मेरों प्रभुजी पलभर पासो राज ॥ सु० ॥ मोटानी महरे राज मोटा कहोज, लाहो लाखीणो प्रभुजी संगे लहीजै राज ॥ सु० ॥ ३ ॥ पिंजर तो फिरसी राज केइ परदेसे, राज सदाइ मारा दिलमांहे रहसी राज ॥ सु०॥ रंगै हूं चोल मजीठ रंगाणा, नहिय विसरस्युप्रभुजी दरसण टाणो राज ॥ सु० ॥ ४॥ लुलि २ हूं तुम पाये जी लागं, मोज महिर तुम पासे हूं मांगू राज ॥ सु० ॥ श्रीजिनचंद्र सदा साधारो, तारक प्रभुजी थे भवजल तारो राज ॥ सु० ॥५॥
॥ दसवां पद ॥ ॥ मोरा पास जिनराज, सूरत थारी लागे प्यारी॥ दीठा आवे दाय, मो० ॥ जिम २ सूरत देखियै प्रभु, तिम २ वाधे प्रीत ॥ तन मन मारा उलसै काइ, रूडी प्रोतनी रीत ॥मो० ॥ १॥
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