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स्तवन-संग्रह। पास रे, जि० ॥ नवि मंकीजे स्वामी तेह निरोस म्हारा जि० ॥ मोटानी तो मोटी थायै बुद्धि रे, जि० ॥ इम जांणिने करज्यो माहरी शुद्ध ॥ म्हारा जि० ॥४॥ राखज्यो मुझ ऊपर निविड सनेह रे, जि. ॥ अवगुण जांणी छिटक न देज्यो छेह ॥ म्हारा जि० ॥ खरतर गच्छपति श्रीजिनलाभ सूरिंद रे, जि०॥ तासु पसायें पभणे अनोपमचंद ॥ म्हारा जि० ॥ ५ ॥
॥ नवां पद ॥ सुगण सनेही प्रभुजी अरज सुणीज्यो, अरज सुणीने मोसु महिर धरीज्यो राज ॥ सु०॥ तुं छै प्रभूजी म्हारो अंतरजामी, पूरब पून्यै थारी सेवा में पांमी राज॥ साहिब में तो तुझने जाण्यो छै साचो, कदिय न दिलमांहे आणुं हुं काचो राज ॥ सु० ॥ १ ॥ साचे तो दिलसुराज करीय सगाई, सुगण प्रभुजीस्युं वधज्यो प्रीत सवाई राज ॥ सु०॥ दरसण प्रभुजी ताहरो दिलमांहे
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